उत्तराखंड का प्राचीन इतिहास
Topic Summary
उत्तराखंड का प्राचीन इतिहास पौराणिक कथाओं, जनजातियों, कुनिंद, कत्युरी और चंद वंशों तथा गढ़वाल राज्य के विकास से जुड़ा है। इसे देवभूमि कहा जाता है।
Topic Content
उत्तराखंड का प्राचीन इतिहास धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध रहा है। इसे देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यहाँ असंख्य मंदिर, तीर्थस्थल और ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहे हैं।
पौराणिक काल
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महाभारत और रामायण में उत्तराखंड के अनेक स्थानों का उल्लेख मिलता है।
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महर्षि व्यास ने महाभारत की रचना बद्रीनाथ के पास व्यास गुफा में की।
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गंगा और यमुना का उद्गम भी यहीं से होता है।
जनजातियाँ और आर्य सभ्यता
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यहाँ प्रारंभ में किरात, नाग और कुनिंद जैसी जनजातियाँ रहती थीं।
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वैदिक काल में आर्य संस्कृति का विकास हुआ।
कुनिंद वंश
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2वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 3वीं शताब्दी तक कुनिंद वंश का राज्य रहा।
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इनके सिक्के हरिद्वार और कुमाऊँ क्षेत्र में पाए गए हैं।
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ये शिव भक्त थे और नमक व्यापार से समृद्ध हुए।
कत्युरी वंश
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7वीं से 11वीं शताब्दी तक कुमाऊँ में कत्युरी वंश का शासन रहा।
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राजधानी बैजनाथ (कत्यूर घाटी) थी।
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इस काल में कई मंदिर और स्थापत्य कला का विकास हुआ।
चंद वंश
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11वीं शताब्दी के बाद चंद वंश ने कुमाऊँ पर शासन किया।
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राजधानी अल्मोड़ा रही।
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इस काल में लोक परंपराएँ और मंदिर संस्कृति फली-फूली।
गढ़वाल का इतिहास
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यहाँ छोटे-छोटे गढ़ों के आधार पर राज्य थे, जिन्हें मिलाकर गढ़वाल कहा गया।
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9वीं शताब्दी में कनकपाल ने गढ़वाल राज्य की स्थापना की।
👉 इस प्रकार उत्तराखंड का प्राचीन इतिहास धर्म, संस्कृति और वीरता का अद्भुत संगम है।