उत्तराखंड का पौराणिक काल

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Updated Sep 22, 2025

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उत्तराखंड का पौराणिक काल: विस्तृत साहित्यिक स्रोत

उत्तराखंड के पौराणिक काल को समझने के लिए विभिन्न प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये ग्रंथ न केवल यहाँ के इतिहास की जानकारी देते हैं, बल्कि इस भूमि के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को भी स्थापित करते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए इन ग्रंथों में वर्णित विशिष्ट तथ्यों को याद रखना आवश्यक है।

1. स्कंद पुराण

स्कंद पुराण, 18 महापुराणों में से एक है और उत्तराखंड के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत है। इस पुराण के दो खंड विशेष रूप से उत्तराखंड के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं:

  • केदारखंड (गढ़वाल):

    • क्षेत्र: इस खंड में हरिद्वार से हिमालय तक के विशाल भू-भाग का वर्णन मिलता है, जो वर्तमान में गढ़वाल मंडल के रूप में जाना जाता है।

    • नामकरण: केदारखंड में इस क्षेत्र को "तपोभूमि" और "स्वर्गभूमि" कहा गया है। इसका नाम भगवान शिव केदारनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ा हुआ है।

    • वर्णन: इसमें गंगा, यमुना, मंदाकिनी, अलकनंदा जैसी नदियों, उनके उद्गम स्थलों और पंच प्रयागों (देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग) का विस्तृत वर्णन है। यह खंड बद्रीनाथ और केदारनाथ के महत्व को भी विस्तार से बताता है।

    • पौराणिक कथाएं: इसमें पांडवों की स्वर्गारोहिणी यात्रा, पंच केदार की उत्पत्ति, भगवान शिव और पार्वती के विवाह जैसे महत्वपूर्ण आख्यान समाहित हैं।

  • मानसखंड (कुमाऊं):

    • क्षेत्र: यह खंड नंदा देवी पर्वत से कालागिरी तक के क्षेत्र का वर्णन करता है, जो आधुनिक कुमाऊं मंडल है।

    • नामकरण: इस क्षेत्र को "कुर्मांचल" भी कहा जाता था, जिसका नाम भगवान विष्णु के कच्छप (कूर्मावतार) से जुड़ा माना जाता है।

    • वर्णन: मानसखंड में नैनीताल, जागेश्वर, चितई जैसे तीर्थ स्थलों का वर्णन है। नंदा देवी पर्वत को केदारखंड और मानसखंड की विभाजन रेखा माना जाता है।

परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदु:

  • स्कंद पुराण में ही उत्तराखंड के दो प्रमुख मंडलों - गढ़वाल और कुमाऊं - का नाम क्रमशः केदारखंड और मानसखंड के रूप में मिलता है।

  • यह पुराण इस क्षेत्र को "पवित्र" और "आध्यात्मिक" भूमि के रूप में स्थापित करता है, जहाँ ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी।

2. महाभारत

महाभारत, जो वेदव्यास द्वारा बद्रीनाथ के पास की गुफा में लिखा गया माना जाता है, उत्तराखंड के इतिहास का एक और महत्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत है।

  • वनपर्व: महाभारत के वनपर्व में पांडवों के वनवास का विस्तृत वर्णन है। पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में कई स्थानों की यात्रा की थी।

  • तीर्थ यात्राएं: पांडवों ने यहां के विभिन्न तीर्थों का भ्रमण किया था। महाभारत में कई स्थानों का उल्लेख है जो आज भी उत्तराखंड में मौजूद हैं, जैसे-

    • लक्ष्यवेध और लाक्षागृह: माना जाता है कि दुर्योधन ने पांडवों को जलाने के लिए लाक्षागृह का निर्माण उत्तराखंड के लाखामंडल में किया था।

    • स्वर्गारोहिणी: पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद इसी क्षेत्र से स्वर्ग की ओर अंतिम यात्रा शुरू की थी। युधिष्ठिर का सदेह स्वर्गगमन यहीं से हुआ था।

  • राजा विराट: महाभारत के अनुसार, पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक वर्ष राजा विराट के राज्य में बिताया था। माना जाता है कि विराट का राज्य इसी क्षेत्र के बैराठ (वर्तमान में अल्मोड़ा में) में था।

  • प्राचीन जनजातियाँ: महाभारत में उत्तराखंड में निवास करने वाली विभिन्न जातियों का उल्लेख मिलता है, जैसे-

    • नाग: इन लोगों का उल्लेख महाभारत में मिलता है।

    • किरात: ये निषाद वंश से थे और युद्धकला में निपुण थे। महाभारत में अर्जुन और शिव के बीच हुए युद्ध में ये शिव की ओर से लड़े थे।

    • यक्ष, गंधर्व और किन्नर: इन जातियों का भी वर्णन मिलता है।

3. ब्राह्मण ग्रंथ

ब्राह्मण ग्रंथ वेदों की व्याख्या करते हैं और यज्ञों तथा कर्मकांडों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करते हैं। इनमें भी उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों का अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख मिलता है।

  • शतपथ ब्राह्मण:

    • इस ग्रंथ में "हिमवान" (हिमालय) का उल्लेख मिलता है, जिसे देवताओं का निवास स्थान बताया गया है।

    • इसमें एक कथा है जिसमें मनु को एक नाव के माध्यम से हिमालय की एक चोटी पर लाया गया था, जिसे "मन्वाश्रम" कहा गया। यह कथा महाप्रलय से संबंधित है और कई विद्वान इस स्थान को उत्तराखंड में मानते हैं।

  • ऐतरेय ब्राह्मण:

    • यह ग्रंथ हिमालय क्षेत्र को "देवभूमि" और "पवित्र" भूमि कहता है, जो वैदिक आर्यों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र था।

परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्य:

  • उत्तराखंड का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जहाँ इस क्षेत्र को "देवभूमि" और "मनीषियों की पूर्ण भूमि" कहा गया है।

  • शतपथ ब्राह्मण में मनु की कथा का उल्लेख है, जो उत्तराखंड की प्राचीनता को दर्शाता है।

  • अथर्ववेद में इस क्षेत्र की औषधीय वनस्पतियों का वर्णन है।

इन सभी ग्रंथों से यह स्पष्ट होता है कि उत्तराखंड का पौराणिक इतिहास अत्यंत समृद्ध और गहरा है। यह केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि भारतीय धर्म, संस्कृति और आध्यात्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है, जिसने हमारी सभ्यता को आकार दिया है।


उत्तराखंड, जिसे 'देवभूमि' और 'तपोभूमि' कहा जाता है, का पौराणिक काल भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टिकोण से, इस काल से संबंधित जानकारी को समझना अत्यंत आवश्यक है। यह न केवल राज्य के इतिहास बल्कि भारतीय पौराणिक कथाओं के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है।

1. पौराणिक काल का साहित्यिक स्रोत

उत्तराखंड के पौराणिक इतिहास को जानने के लिए मुख्य रूप से स्कंद पुराण को सबसे प्रामाणिक स्रोत माना जाता है। इस ग्रंथ के दो खंड, केदारखंड और मानसखंड, उत्तराखंड के दो प्रमुख मंडलों, गढ़वाल और कुमाऊं, का विस्तृत वर्णन करते हैं।

  • केदारखंड (गढ़वाल): इस खंड में हरिद्वार से हिमालय तक के क्षेत्र का वर्णन मिलता है। इसमें गढ़वाल क्षेत्र को 'देवभूमि' और 'तपोवन' कहा गया है। यह क्षेत्र भगवान शिव और पांडवों से संबंधित अनेक कथाओं का केंद्र रहा है।

  • मानसखंड (कुमाऊं): यह खंड नंदा देवी पर्वत से कालागिरि तक के क्षेत्र का वर्णन करता है, जो वर्तमान में कुमाऊं मंडल के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र को कुर्मांचल भी कहा जाता था। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व का उल्लेख इस खंड में मिलता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि स्कंद पुराण के अलावा, ऋग्वेद, महाभारत, रामायण और अन्य पुराणों में भी इस क्षेत्र का उल्लेख है।

2. उत्तराखंड और पौराणिक कथाएँ

महाभारत काल

  • पांडवों का अज्ञातवास और स्वर्गारोहिणी यात्रा: पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में बिताया। माना जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद, पांडवों ने इसी भूमि से स्वर्गारोहिणी (स्वर्ग की ओर आरोहण) यात्रा शुरू की थी। इसी यात्रा के दौरान द्रौपदी और चार पांडव यहीं पर शरीर त्याग कर स्वर्ग गए। केवल युधिष्ठिर ही सदेह स्वर्ग में प्रवेश कर पाए।

  • पंच केदार: महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की खोज की। शिव ने बैल का रूप धारण कर भूमि में प्रवेश करना चाहा। भीम ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। इस घटना के परिणामस्वरूप भगवान शिव के शरीर के पांच अलग-अलग अंग पांच अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए, जो पंच केदार कहलाए:

    • केदारनाथ: पीठ का भाग।

    • तुंगनाथ: भुजाएं।

    • रुद्रनाथ: मुख।

    • मध्यमहेश्वर: नाभि।

    • कल्पेश्वर: जटाएं।

रामायण काल

  • उत्तराखंड का संबंध रामायण काल से भी रहा है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में तपस्या की थी। देवप्रयाग में एक स्थान को भगवान राम की तपस्थली माना जाता है। इसके अलावा, सुग्रीव, अंगद और विभीषण जैसे पात्रों का भी यहां से जुड़ाव बताया जाता है।

  • हनुमान जी और संजीवनी बूटी: रामायण के अनुसार, लक्ष्मण के मूर्छित होने पर हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणागिरि पर्वत (उत्तराखंड में स्थित) का एक हिस्सा ही उखाड़ लिया था।

अन्य प्रमुख कथाएं

  • शिव-पार्वती का विवाह: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह त्रियुगीनारायण मंदिर (रुद्रप्रयाग) में हुआ था।

  • ब्रह्मा और मनु: सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और प्रलय के बाद मानव सभ्यता को पुनर्जीवित करने वाले मनु ने भी इसी भूमि पर तपस्या की थी।

  • व्यास गुफा: माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने बद्रीनाथ के पास स्थित व्यास गुफा में महाभारत, श्रीमद्भागवत और अन्य पुराणों की रचना की थी।

3. प्रमुख पौराणिक स्थल और उनका महत्व

  • चार धाम:

    • बद्रीनाथ: भगवान विष्णु को समर्पित यह धाम अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।

    • केदारनाथ: भगवान शिव को समर्पित यह ज्योतिर्लिंग मंदार पर्वत पर स्थित है।

    • यमुनोत्री: यमुना नदी का उद्गम स्थल।

    • गंगोत्री: गंगा नदी का उद्गम स्थल।

  • पंच प्रयाग: ये वे स्थान हैं जहां पांच प्रमुख नदियां अलकनंदा से मिलती हैं और उनका धार्मिक महत्व है।

    • विष्णुप्रयाग: अलकनंदा + धौलीगंगा।

    • नंदप्रयाग: अलकनंदा + नंदाकिनी।

    • कर्णप्रयाग: अलकनंदा + पिंडर।

    • रुद्रप्रयाग: अलकनंदा + मंदाकिनी।

    • देवप्रयाग: अलकनंदा + भागीरथी, यहां से यह नदी गंगा कहलाती है।

  • हरिद्वार: इसे गंगा द्वार भी कहते हैं। यहां पर गंगा नदी मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। यह कुंभ मेले का भी एक प्रमुख स्थल है।

  • ऋषिकेश: यह तपस्थली और योग का एक प्रमुख केंद्र है, जिसे 'योग नगरी' भी कहा जाता है।

  • जागेश्वर धाम: अल्मोड़ा में स्थित यह मंदिर समूह कत्यूरी राजाओं द्वारा निर्मित माना जाता है और इसे भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

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