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उत्तराखंड, जिसे 'देवभूमि' और 'तपोभूमि' कहा जाता है, का पौराणिक काल भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टिकोण से, इस काल से संबंधित जानकारी को समझना अत्यंत आवश्यक है। यह न केवल राज्य के इतिहास बल्कि भारतीय पौराणिक कथाओं के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है।
1. पौराणिक काल का साहित्यिक स्रोत
उत्तराखंड के पौराणिक इतिहास को जानने के लिए मुख्य रूप से स्कंद पुराण को सबसे प्रामाणिक स्रोत माना जाता है। इस ग्रंथ के दो खंड, केदारखंड और मानसखंड, उत्तराखंड के दो प्रमुख मंडलों, गढ़वाल और कुमाऊं, का विस्तृत वर्णन करते हैं।
केदारखंड (गढ़वाल): इस खंड में हरिद्वार से हिमालय तक के क्षेत्र का वर्णन मिलता है। इसमें गढ़वाल क्षेत्र को 'देवभूमि' और 'तपोवन' कहा गया है। यह क्षेत्र भगवान शिव और पांडवों से संबंधित अनेक कथाओं का केंद्र रहा है।
मानसखंड (कुमाऊं): यह खंड नंदा देवी पर्वत से कालागिरि तक के क्षेत्र का वर्णन करता है, जो वर्तमान में कुमाऊं मंडल के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र को कुर्मांचल भी कहा जाता था। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व का उल्लेख इस खंड में मिलता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि स्कंद पुराण के अलावा, ऋग्वेद, महाभारत, रामायण और अन्य पुराणों में भी इस क्षेत्र का उल्लेख है।
2. उत्तराखंड और पौराणिक कथाएँ
महाभारत काल
पांडवों का अज्ञातवास और स्वर्गारोहिणी यात्रा: पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में बिताया। माना जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद, पांडवों ने इसी भूमि से स्वर्गारोहिणी (स्वर्ग की ओर आरोहण) यात्रा शुरू की थी। इसी यात्रा के दौरान द्रौपदी और चार पांडव यहीं पर शरीर त्याग कर स्वर्ग गए। केवल युधिष्ठिर ही सदेह स्वर्ग में प्रवेश कर पाए।
पंच केदार: महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की खोज की। शिव ने बैल का रूप धारण कर भूमि में प्रवेश करना चाहा। भीम ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। इस घटना के परिणामस्वरूप भगवान शिव के शरीर के पांच अलग-अलग अंग पांच अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए, जो पंच केदार कहलाए:
केदारनाथ: पीठ का भाग।
तुंगनाथ: भुजाएं।
रुद्रनाथ: मुख।
मध्यमहेश्वर: नाभि।
कल्पेश्वर: जटाएं।
रामायण काल
उत्तराखंड का संबंध रामायण काल से भी रहा है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में तपस्या की थी। देवप्रयाग में एक स्थान को भगवान राम की तपस्थली माना जाता है। इसके अलावा, सुग्रीव, अंगद और विभीषण जैसे पात्रों का भी यहां से जुड़ाव बताया जाता है।
हनुमान जी और संजीवनी बूटी: रामायण के अनुसार, लक्ष्मण के मूर्छित होने पर हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणागिरि पर्वत (उत्तराखंड में स्थित) का एक हिस्सा ही उखाड़ लिया था।
अन्य प्रमुख कथाएं
शिव-पार्वती का विवाह: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह त्रियुगीनारायण मंदिर (रुद्रप्रयाग) में हुआ था।
ब्रह्मा और मनु: सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और प्रलय के बाद मानव सभ्यता को पुनर्जीवित करने वाले मनु ने भी इसी भूमि पर तपस्या की थी।
व्यास गुफा: माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने बद्रीनाथ के पास स्थित व्यास गुफा में महाभारत, श्रीमद्भागवत और अन्य पुराणों की रचना की थी।
3. प्रमुख पौराणिक स्थल और उनका महत्व
चार धाम:
बद्रीनाथ: भगवान विष्णु को समर्पित यह धाम अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।
केदारनाथ: भगवान शिव को समर्पित यह ज्योतिर्लिंग मंदार पर्वत पर स्थित है।
यमुनोत्री: यमुना नदी का उद्गम स्थल।
गंगोत्री: गंगा नदी का उद्गम स्थल।
पंच प्रयाग: ये वे स्थान हैं जहां पांच प्रमुख नदियां अलकनंदा से मिलती हैं और उनका धार्मिक महत्व है।
विष्णुप्रयाग: अलकनंदा + धौलीगंगा।
नंदप्रयाग: अलकनंदा + नंदाकिनी।
कर्णप्रयाग: अलकनंदा + पिंडर।
रुद्रप्रयाग: अलकनंदा + मंदाकिनी।
देवप्रयाग: अलकनंदा + भागीरथी, यहां से यह नदी गंगा कहलाती है।
हरिद्वार: इसे गंगा द्वार भी कहते हैं। यहां पर गंगा नदी मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। यह कुंभ मेले का भी एक प्रमुख स्थल है।
ऋषिकेश: यह तपस्थली और योग का एक प्रमुख केंद्र है, जिसे 'योग नगरी' भी कहा जाता है।
जागेश्वर धाम: अल्मोड़ा में स्थित यह मंदिर समूह कत्यूरी राजाओं द्वारा निर्मित माना जाता है और इसे भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।